कविता: मृत्यु के पश्चात — कवि: यशवन्त (मेरे पिता)

Ritesh Singh
Oct 18, 2020

मेरी समाधि पर खड़े होकर मत रोना,
मत समझना मुझे मज़ार में सोया हुआ,
मैं तो नभ की पवनों में बहता हूँ,
तराशे गए हीरों में चमकता हूँ,
भास्कर की किरणों से नहाई लहलहाती,
पक्व फसलों की आभा में रहता हूँ,
मधुर पतझड़ की वर्षा में मुझे पाओगे,
प्रातः की नीरवता में जब तुम आँखें खोलते हो,
आलस्य को परास्त करते चैतन्य में मुझे देखोगे,
चक्रीय उड़ान भरते शान्त विहगों के बीच मैं हूँ,
नन्हें टिमटिमाते तारे की भाँति रात में चमकते हुए,
मेरी समाधि पर खड़े होकर आँसू मत बहाओ,
मैं नहीं वहाँ, मैं अमिट बना।

- यशवन्त (मेरे पिता)

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